Kabir ke Dohe कबीर दास के दोहे I

संत कबीर दास जी के जीवन मार्ग दर्शक दोहे 






माला फेरत जुग भया, फिरा न मन का फेर,
।। कर का मनका डार दे, मन का मनका फेर ।।


दोस पराए देखि करि, चला हसन्त हसन्त,
।।अपने याद न आवई, जिनका आदि न अंत।।


निंदक नियरे राखिए, ऑंगन कुटी छवाय,
।।बिन पानी, साबुन बिना, निर्मल करे सुभाय।।


दुर्लभ मानुष जन्म है, देह न बारम्बार,
।।तरुवर ज्यों पत्ता झड़े, बहुरि न लागे डार।।


कबीरा खड़ा बाज़ार में, मांगे सबकी खैर,
।।ना काहू से दोस्ती,न काहू से बैर.।।


हिन्दू कहें मोहि राम पियारा, तुर्क कहें रहमाना,
।।आपस में दोउ लड़ी-लड़ी  मुए, मरम न कोउ जाना।।


बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय,
।।जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय।।


पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय,
।।ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय।।


साधु ऐसा चाहिए, जैसा सूप सुभाय,
।।सार-सार को गहि रहै, थोथा देई उड़ाय।।


तिनका कबहुँ ना निन्दिये, जो पाँवन तर होय,
।।कबहुँ उड़ी आँखिन पड़े, तो पीर घनेरी होय।।


धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय,
।।माली सींचे सौ घड़ा, ॠतु आए फल होय।।


जाति न पूछो साधु की, पूछ लीजिये ज्ञान,
।।मोल करो तरवार का, पड़ा रहन दो म्यान।।


दोस पराए देखि करि, चला हसन्त हसन्त,
।।अपने याद न आवई, जिनका आदि न अंत।।


जिन खोजा तिन पाइया, गहरे पानी पैठ,
।।मैं बपुरा बूडन डरा, रहा किनारे बैठ।।


बोली एक अनमोल है, जो कोई बोलै जानि,
।।हिये तराजू तौलि के, तब मुख बाहर आनि।।


अति का भला न बोलना, अति की भली न चूप,
।।अति का भला न बरसना, अति की भली न धूप।।


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